Skills and Competency Development: Creating a Vibrant Human

कौशल और योग्यता का विकास :एक प्रतिभाशाली इंसान का निर्माण

 

समूचे विश्व मे कौशल विकास के चर्चे हैं। भारत इससे अछूता नहीं है। भारत के माननीय प्रधान मंत्री श्री. नरेंद्र मोदी जी विश्व स्तर पर कौशल विकास के आधार पर रोजगार अवसरों की बात कर रहे हैं। कई राज्य सरकारें इस मुद्दे को आगे बढ़ाने मे शामिल है। लेकिन अधिकांश लोग रोजगार पाने के लिए प्रयोगिक कौशल को बेरोजगारी की समस्या के हल के रूप मे ले रहे है। जबतक आधारभूत मानदंड और कौशल बच्चों के मन मे धँसी हुई है , प्रयोगिक कौशल से भी इंसान सफल नहीं हो सकता।

किसी एक को इस पर दूरदृष्टि और दीर्घकाल के लिए सोचने की आवश्यकता है। इंसान के पास विकास और दीर्घता के पाँच स्तम्भ है। ये बौद्धिक योग्यता, भावनात्मक ताकत , जीवनशैली , शारीरिक क्षमता और प्रयोगिक ज्ञान। यदि नींव रखते समय इनमे से कोई भी एक कमजोर पड़ जाता है, उदा॰प्राथमिक शिक्षण शिक्षण समाप्त होने तक इंसान सफल होने मे कमजोर पड़ जाए। रोजगार कौशल इसको आगे बढ़ाता है । आज हमारा समाज शैक्षणिक संस्थोंके शैक्षणिक पाठ्यक्रम पर केन्द्रित होने की समस्या का सामना कर रहा है। पालक अपने बच्चों को परीक्षा में मिलने वाले अंकों को लेकर चिंतित हैं। उच्च शिक्षा मे प्रवेश पाना बहुतांश इन अंकों पर निर्भर करता है। इससे शिक्षण पद्धति “ अंक पाओ आगे बढ़ो” शैली की हो गयी है। विषय को समझना अप्रधान हो गया है। पुराने समय की व्यवहारवादी पद्धति अब पिछड़ गयी है।

जन्मजात कौशल और सिद्धांतों को बढ़ाने मे कोई भी प्रयत्न नहीं करता। हर एक सामान्य बच्चे के पास इन स्तंभों को मजबूत करने की ताकत होती है। लेकिन, बच्चों को इसके लिए प्रवृत्त नहीं किया जाता। कोई भी अपने बच्चे की एकाग्रता या याददाश्त को रचनात्मक सोच और ज़िम्मेदारी का अहसास बढ़ाने के लिए तेज करने की कोशिश नहीं करता। अचरज की बात है की कुल 40 मूल कौशल और विशेषताएँ ( किसी के मन मे कुछ और संख्या हो सकती है) है। इन्हे उपयुक्त ढंग से नहीं बताया जाता। ईमानदारी, अनुशासन , समय का ज्ञान और मूल्य की ओर शायद ही कम उम्र मे कोई ध्यान देता हो। भारत मे कितने ही ऐसे युवक है जिनमे मे स्नातक होने के बाद भी संभाषण कौशल का अभाव होता है। कुछ युवा तो विचित्र ढंग से पेश आते है। सहनशक्ति दिन ब दिन घटती जा रही है। दूसरो को साथ लेकर चलना और परिस्थितियों का सामना करना तो मानो समाप्त होता जा रहा है। ऐसे लोगों की संख्या अधिक होने के कारण और विकास के अभाव के परिणामस्वरूप समाज मे अस्थिरता पैदा हो रही है।

इन सभी मुद्दों को प्राथमिक शिक्षा के दौरान बताना चाहिए। सन 2005 मे नॅशनल करीकुलम फ्रेमवर्क ऑफ इंडिया मे इसका उल्लेख किया गया है। लेकिन इसका मुख्य पाठ्यक्रम मे कोई स्थान नहीं है और स्कूलों मे भी इसपर अमल नहीं किया गया है।

इन्ही कौशल और मूल विशेषताओं को जागरूक करने के उद्देश्य से लेकर एंटेल्की सिस्टम अँड सोल्युशन प्राइवेट लिमिटेड एक मॉडल लेकर उभर कर आया है जिसमे “ उपक्रम उपक्रम पर आधारित शिक्षा “ के माध्यम से छात्रों मे कौशल और मूल विशेषताओं को जागरूक करने का प्रयास किया है। इसे स्कूल या घर पर बैठे भी किया जा सकता है। मौजूदा कुल 40 कौशल और विशेषताओं में से संस्थान केवल 14 समीक्षात्मक कौशल स्कूल के दिनों मे और शेष कॉलेज के दिनों मे चलाएगा। यह सिस्टेम बड़ा ही रोचक , उपभोक्ता से मैत्रीपूर्ण है और विशेष कर जवान बच्चे इन उपक्रम मे अधिक रुचि दिखा रहे हैं।

रूढ़िवादी व्यवस्था मे यह कौशल और विशेषताएँ घर पर या स्कूल मे विकसित की जा सकती हैं। क्लास मे बढ़ती छात्रों की संख्या शिक्षकों को असमंजस मे डाल देती है। हर एक छात्र की ओर ध्यान देना उनके लिए एक मुसीबत खड़ी हो जाती है। पाठ्यक्रम भी कठिन होने के कारण छात्र भी उसे पूरा नहीं कर पाते। अभिभावकों को इसकी जानकारी नहीं होती या फिर वे इतने व्यस्त होते है की उनके बच्चों की अवश्यकतों पर ध्यान दे सके।

"एंटेल्की" ने इन समस्याओं से बाहर निकालने के लिए एक ऐसी योजना बनाई है जिसके लिए शिक्षकों को कक्षा 3 री से 10 वी के छात्रों के विकास के लिए हफ्ते मे केवल 2 घंटे ही पर्याप्त होते है। कक्षा के आधार पर विकास की गति को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है और स्कूल के विभिन्न स्तरों पर चार स्तरीय परिवेक्षीय तरीकों से लिया जाता है। छात्रों की प्रगति के लिए यह एक अत्यंत असरदार योजना साबित हुई है।

 

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